आर्टिकल
*कोरोना में सर्वाधिक मुश्किल दौर में हैं किशोर और युवा*
डॉ. कंचन दीक्षित
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Dr. Kanchan Dixit
कोरोना महामारी ने पूरे विश्व के लोगों की दिनचर्या को अस्त-व्यस्त कर के रख दिया है. अपना देश हो या फिर यूरोपियन देश, विकसित देश रहे हों या विकासशील देश सभी इस महामारी के संकट को झेलते नजर आये हैं. कोरोना के कारण बहुतायत में रोजगार बंद हुए, बहुतायत में लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. तमाम सारे लोगों के कैरियर पर संकट आ खड़ा हुआ. कोरोना के कारण समय-समय पर लगते लॉकडाउन के कारण भी लोग घरों के अन्दर कैदी जैसी स्थिति में आ गए. जो लोग वर्क फ्रॉम होम में थे, वे भी सहजता का अनुभव नहीं कर रहे थे. उनके ऊपर भी काम का अत्यधिक बोझ था ही साथ ही एक नयी तरह की कार्य-प्रणाली का वे अनुभव कर रहे थे. ऐसे में बहुत से लोग शारीरिक परेशानियों से जूझ रहे थे तो बहुत से लोग मानसिक समस्या का शिकार हो रहे थे.
मनोविज्ञान क्षेत्र के लेजेंड साइकियाट्री के जर्नल में मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में छपी रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और भविष्य में भी कारोना महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है. जर्नल के द्वारा किये गए सर्वे में निकल कर सामने आया है कि किशोर और युवा वर्ग के लोगों के सामने रोजगार उतनी बड़ी समस्या नहीं, जितनी कि उनके कैरियर की समस्या थी. लॉकडाउन के चलते सभी शिक्षण संस्थान बंद थे, विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के ही आगे की कक्षा में प्रोन्नत कर दिया जा रहा था. बहुत सी महत्त्वपूर्ण प्रतियोगी परीक्षाओं को आगे बढ़ा दिया गया था. ये सारी स्थितियाँ किशोरों और युवाओं में एक तरह की अनिश्चितता पैदा कर रही थीं. इस तरह के अचानक से आये शैक्षिक गतिरोध, कैरियर में अवरोध के चलते किशोरों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है.
सतत और नियमित वैक्सीनेशन के चलते ये माना जा रहा था कि कोरोना से बहुत हद तक निपट लिया गया है अथवा इससे निपट लिया जायेगा. ऐसी सोच के बाद भी पिछले वर्ष अचानक से एक भयंकर लहर ने सारी संभावनाओं को ध्वस्त कर दिया. अत्यंत भयंकर रूप धारण कर कोरोना ने घर-घर में तबाही मचा दी. सफल वैक्सीनेशन के बाद भी कोरोना के द्वारा मौत के तांडव ने सबको अन्दर तक हिला कर रख दिया. दो लहर निकल जाने के बाद भी लग रहा है कि इस महामारी से अभी पीछा छूटने वाला नहीं है. इधर अब नए वैरिएंट ओमिक्रोन के आने की खबर चल ही रही थी कि ये भी खबर आई कि ओमिक्रोन ने डेल्टा वैरिएंट के साथ मिलकर एक नया वैरिएंट डेल्मिक्रोन का निर्माण कर लिया है. इससे समझ आ रहा है कि पिछले दो साल से कहर बरपा रही कोरोना बीमारी ने अभी पीछा नहीं छोड़ा है. कोरोना की संभावित तीसरी लहर को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत जल्द भारत में कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है.
कोरोना की विगत दो लहरों ने सभी वर्ग के लोगों को प्रभावित किया है लेकिन किशोरों और युवाओं पर इसका गंभीर दुष्प्रभाव रहा है. हम सभी के लिए ये शताब्दी की सबसे बड़ी गंभीर त्रासदी है. किशोरों और युवाओं के साथ-साथ महिलाएं भी इस बीमारी के कारण उपजी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से अछूती नहीं है. कोरोना काल में दुनिया भर में अवसाद और चिंता के मामलों में क्रमश 28 और 26 फ़ीसदी में वृद्धि हुई है. युवाओं और महिलाओं में इस के मामले सबसे ज्यादा देखने को मिले हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के क्वींसलैंड सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ रिसर्च की शोधकर्ता डॉक्टर डेमियन सेंटोमारो ने बताया है कि यह अध्ययन वर्ष 2020 में 204 देशों में किया गया. कोरोना काल में 28 फ़ीसदी अवसाद के मरीज़ बढ़ गए. इसकी संख्या 19 करोड़ से बढ़कर 24 करोड़ पार कर गई. इनमें महिलाओं की संख्या 3.5 करोड़ वहीं पुरुषों की संख्या 1.8 करोड़ है. महामारी के कारण चिंता के मामले जहाँ 29.8 करोड़ थे वे बढ़कर 37.4 करोड़ हो गए. महिलाओं में चिंता के मामले करीब 5.2 करोड जबकि पुरुषों में 2.4 करोड़ थे.
आर्थिक तंगी, पारिवारिक समस्या, बीमारी, काम का बोझ आदि सहित अन्य तरह की चिंताओं समेत अन्य समस्याओं के साथ कोरोना से उबरे लोग भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत लोग अवसाद का शिकार हैं. इसके मरीज इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि ऐसे लोग जो किसी भी तरह से मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, वे खुद को मानसिक रोगी मानने को तैयार नहीं हैं. इनमें बदल रहा व्यवहार लोगों के दिमाग पर भारी पड़ रहा है. ऐसे में तनाव, नींद का न आना, नशाखोरी, बीमारी की आशंका, घबराहट, मौत का डर, समस्या का समाधान ना होना इत्यादि लक्षण नजर आ रहे हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना काल के कारण जीवन में आया ठहराव और वर्तमान कार्यशैली के साथ तालमेल का ना बैठ पाना भी डिप्रेशन का कारण बन गया है. लोगों को अपने भीतर आए बदलावों पर ध्यान देकर अनुशासित करना होगा. परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है किन्तु इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है. नियमित दिनचर्या न होने के कारण मोबाइल पर समय बिताए जाने की अवधि में बढ़ोतरी हुई है. स्क्रीन टाइम बढ़ने से मानसिक एकाग्रता और ध्यान की कमी आदि समस्याओं में भी बढ़ोतरी हुई है. जिन लोगों ने कोविड-19 के कारण अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए यह समस्या अधिक ही देखी जा रही है और ऐसी स्थिति में उपजे तनाव का मुकाबला करना अधिक मुश्किल हो रहा है. इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि किशोर अपनी भावनाओं को बताने में इसलिए हिचकिचाते हैं कि कहीं कोई उनके बारे में कोई गलत राय ना बना ले. कहीं कोई उनके ऊपर अपना निर्णय ना थोप दे.
किशोरों के व्यवहार में अक्सर इस बात का पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि उनमें तनाव की स्थिति गंभीर है या फिर यह बदलाव उनकी किशोरावस्था के बदलाव का व्यवहार है? कुछ विशेष तरह के लक्षणों से ही किशोरों के तनाव की पहचान की जा सकती है जैसे कि चिड़चिड़ापन, अकारण क्रोध, आक्रामकता, अचानक हिंसक हो जाना, सोच में नकारात्मकता आ जाना, नींद कम आना, भूख कम लगना आदि. परिजनों एवं मित्रों को किशोरों में इस तरह के किसी भी व्यवहार पर विशेष रूप से ध्यान रखना होगा. यदि इस तरह का व्यवहार लंबे समय तक हो तो किसी मनोवैज्ञानिक से परामर्श अवश्य करना चाहिए. अभिभावकों को समझना होगा कि किशोर, युवा अपने अधिक मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. उन्हें मानसिक एवं सामाजिक सहयोग की आवश्यकता है. इसके साथ ही साथ मानसिक स्वास्थ्य प्रणालियों को भी तत्काल मजबूत करने की भी आवश्यकता है.
बहुत सुंदर। वर्तमान संदर्भ को दर्शाता आलेख।
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